Ahmed Alvi

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29-Sep-2023 ह مزاحیہ نظم

जुमेरात की रोटी 

नाम हो मुर्दों, का पर ज़िंदा, ही खाए फातिहा

आए मुल्ला जी जब इक घर में बराए फातिहा


पास के घर से बुलंद आवाज़ रोने की सुनी

पूछा क्या है माजरा मिस हेपनिंग क्या हो गई


उनको बतलाया जवानी में ही शौहर मर गया

उम्र भर के वास्ते बीवी को बेवा कर गया 


बोले मिला जी करा दो ग़मज़दा से मेरी बात

ग़म ग़लत हो जाएगा, हो साथ गर आल्ला की ज़ात


आड़ में पर्दे की जब ग़मग़ीन बेवा आ गई

उसको समझाते हुए इस तरह बोला मौलवी


हर किसी को ज़ाइक़ा चखना है आख़िर मौत का

कोई पैग़म्बर हो इस दुनिया में, कोई औलिया


मौलवी जी उनके जाने का नहीं है कोई ग़म

चार दिन से मांगते थे एक बोसा कम से कम


बोसा ना देने की ये तहमत भी मुझ पर धर गये 

क्या कहूँ मैं एक बोसे की तलब में मर गये 


आपके शौहर को पहुँचा दूँगा बोसा क़ब्र में

बख़्श दूँगा उनको बोसा, आप बोसा मुझ को दें


भाग जा ऐ मौलवी, अब पट न जाए तो कहीं

बोली बीवा, बोसा, है जुमरात की रोटी नहीं


अहमद अलवी

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2 Comments

madhura

02-Oct-2023 08:48 AM

V nice

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Milind salve

01-Oct-2023 10:27 AM

V nice

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